मैं नज़्म नहीं लिखती मैं लिखती हूं तेरी मेरी कहानियां। मैं नज़्म नहीं लिखती मैं लिखती हूं तेरी मेरी कहानियां।
मेरे मन के भावों को- कैसे पढ़ लेती है, एक स्त्री ? एक तरुणी ? मेरे मन के भावों को- कैसे पढ़ लेती है, एक स्त्री ? एक तरुणी ?
साथ में होकार अजनबी सी राह थी जिंदगी मिलके बिसर चली भूल को। साथ में होकार अजनबी सी राह थी जिंदगी मिलके बिसर चली भूल को।
बड़े होते ही वही पराया धन माँ-पिता कि ज्यादा सेवा करता. बड़े होते ही वही पराया धन माँ-पिता कि ज्यादा सेवा करता.
स्वयं जब दबने लगी.... बिखरने लगी... स्वयं ही सिहरने लगी.... स्वयं जब दबने लगी.... बिखरने लगी... स्वयं ही सिहरने लगी....